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सोच बदलने से ही सशक्त होगी नारी

– श्रीमती केशर सोनकर
सरकारों की ओर से महिलाओं के लिए कानून तो बहुत बनाए गए हैं, लेकिन ज्यादातर महिलाओं को इनकी जानकारी नहीं है या उन्हें अपने अधिकारों उपयोग नहीं करने दिया जाता है। नारी पुरुषों के बराबर अधिकार तो रखता है पर क्या उन्हें घर परिवार, समाज में काम करने का मौका मिलता है? यह विचारणीय मुद्दा है. महिलायें पंच, सरपंच, पार्षद, विधायक यहां तक की मंत्री भी बन जाती है, फिर भी वे स्वतंत्र होकर काम नहीं कर पाती। उनका काम या तो पति करते हैं या फिर पिता। उन्हें काम करने नहीं दिया जाता, हमारे समाज में महिलाओं के काम में पुरुषों का दखल होता ही है, नारी की प्रगति के लिए इसे बदलने की जरुरत है. उन्हें निर्णय लेने, काम करने का पूरा अधिकार परिवार और समाज से मिलना चाहिए तभी तो हमारे समाज की महिलायें तरक्की कर पायेंगी। हर महिला को उसके अधिकार पता हों, ये सुनिश्चित होना चाहिए। ऐसे में समाज की महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने की जिम्मेदारी बनती है। इसके अलावा ये भी निकलकर आया कि महिलाओं को सबसे पहले खुद के प्रति अपना नजरिया बदलना होगा। महिला सशक्त है, ये अहसास उन्हें खुद करना होगा। इससे महिलाओं के आत्मविश्वास में बढ़ोत्तरी होगी, जो प्रगति के लिए बेहद जरूरी है। हमारे समाज में भी पुरुषों की तरह महिलाओं को बराबर की आजादी नहीं है। यहां तक कि वे अपने जीवन से जुड़े फैसले भी खुद नहीं ले पाती हैं। वे क्या करें और क्या न करें, ये परिवार तय करता है। महिला सशक्तीकरण की दृष्टि से ये स्थिति ठीक नहीं है। बेटियां अपनी पसंद की राह चुनें, इसकी उन्हें आजादी होनी चाहिए। इसमें महिलाओं को ही बड़ी भूमिका अदा करनी होगी। पढ़ाई, कॅरियर, शादी सभी मामलों में महिलाओं को अपनी पसंद की राह चुनने का अधिकार होना चाहिए। इसके अलावा ये भी जरूरी है कि महिलाएं अपने आप को परिवार में अंतिम व्यक्ति के रूप में न देखकर प्रथम व्यक्ति के रूप में देखें। परिवार में महिला और पुरुष के लिए अलग- अलग मानक न हों, सभी को समान समझा जाना चाहिए। इसमें बड़ी भूमिका महिलाओं को ही निभानी होगी। तभी सही मायने में सशक्तीकरण होगा। महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए समाज और महिलाओं को खुद को अपने प्रति नजरिया बदलना होगा। महिलाओं को अपनी बेटियों की ठीक उसी तरह से परवरिश करनी चाहिए, जैसे कि वे अपने बेटों की करती हैं। सोच में बदलाव समाज को भी करना चाहिए। महिलाओं और पुरुषों के बीच के फर्क को खत्म करना होगा। इसके अलावा महिलाओं को खुद में निर्णय लेने की क्षमता विकसित करनी होगी।महिलाओं की बेहतरी के लिए संविधान ने उन्हें तमाम अधिकार दे रखे हैं, लेकिन समाज के जिस तबके की महिलाओं को इन अधिकारों की सबसे ज्यादा जरूरत है, उन्हें ही इसकी जानकारी नहीं है। ये बहुत बड़ी कमी है। भूख है और भोजन भी है, लेकिन जानकारी के अभाव में दोनों एकदूसरे तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। इस कमी को दूर करने के लिए सरकार, समाज सभी स्तर पर तेजी से काम करने की जरूरत है। पुराने जमाने में महिला सशक्त थी। यही वजह है कि तमाम धार्मिक गाथाओं में पुत्रों की पहचान उसके मां से की जा सकती है। लेकिन, बीच के दौर में इसमें कमी आई। ये महिलाओं के आत्मविश्वास की कमी से हुआ। महिलाओं को अपना खोया हुआ ये आत्मविश्वास वापस लाना होगा। हम सशक्त हैं, ये महसूस करना होगा, तभी सशक्त महिला समाज विकसित होगा। बेटी के जन्म के साथ ही परिवार में उसकी शादी की चिंता की जाने लगती है। ये स्थिति ठीक नहीं है। इसमें बदलाव की आवश्यकता है। बेटियों की शादी की नहीं, बल्कि उनकी शिक्षा की चिंता करनी चाहिए। बेटियों की शादी के लिए नहीं, बल्कि उनकी बेहतर शिक्षा के लिए पैसा इकट्ठा करना चाहिए। शिक्षित बेटी के भविष्य की चिंता उसके परिजनों को नहीं करनी पड़ती है। बल्कि, वे खुद अपने फैसले लेने में सक्षम हो जाती हैं। आमतौर पर देखा जाता है कि परिवार के महत्वपूर्ण फैसलों में महिलाओं की भूमिका पीछे रहती है। ये कोई और नहीं करता, बल्कि महिलाएं ही अपने कदम पीछे खींच लेती हैं। महिला सशक्तीकरण की दिशा में ये स्थिति बाधक है। इसमें बदलाव करना होगा। महिलाओं को महत्वपूर्ण फैसले लेने होंगे। ये संदेश परिवार से शुरू होकर समाज और देश तक जाना चाहिए।

(लेखिका के अपने व्यक्तिगत विचार है, इनका नकल करना अपराध माना जाएगा)

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