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बचे रहकर लड़ना ही होगा

आलेख- तारन प्रकाश सिन्हा
यही वह समय है, जब सारे बंद दरवाजे एक-एक कर खोल देने चाहिए। पिछले दो महीनों के दौरान हम सबने अपने-अपने दरवाजों को बंद रखा, ताकि कोरोना से बचा जा सके। बचने की इस कोशिश में हम लड़ना भूलते जा रहे थे। अब यह लड़ने का वक्त है। घरों से बाहर आकर कोरोना के खिलाफ एक नयी जंग शुरू करने का वक्त है।पूरी दुनिया इस बात को समझ रही है कि कोरोना के संक्रमण की गति को कम करने के लिए लॉकडाउन जैसे उपाय थोड़े समय के लिए प्रभावी हो सकते हैं, इसे लंबे समय तक जारी रखना नयी आपदाओं को न्योता देना ही होगा। इसीलिए दुनिया अब लॉकडाउन से अनलॉक की ओर बढ़ रही है। हम भी धीरे-धीरे अपनी-अपनी दुनियाओं को खोल रहे हैं।कोरोना का संकट केवल स्वास्थ्य का संकट नहीं है। यह हमारी परस्परता पर भी संकट है। इसीलिए यह ज्यादा गंभीर भी है। स्वास्थ्य को बचाए रखने से ज्यादा बड़ी चुनौती परस्परता को बचाए रखने की है। कोरोना वायरस से कैसे बचा जा सकता है, इतनी जागरुकता तो आ ही चुकी है। असल चुनौती यह है कि वायरस से खुद को बचाए रखते हुए, अपनी परस्परता को कैसे बचाया जा सकता है।परस्परता का अर्थ है एक दूसरे का साथ। एक-दूसरे के प्रति संवेदना, सहानुभूति। एक-दूसरे का सहयोग। साहचर्य।परस्परता, संवेदना, सहानुभूति, सहयोग, साहचर्य को बचाए रखने का अर्थ है जीवन को बचाए रखना।कोरोना ने जितनी कड़ी चुनौतियां पेश की, हमारी संवेदनाएं उतनी ही सघन होकर सामने आई। शहरों में अपना रोजगार गंवा कर घर लौट रहे प्रवासी मजदूरों के लिए किसी ने अपनी थालियों से रोटियां अलग कर दीं, तो किसी ने तपती हुई सड़क और जख्मी पांवों के बीच चप्पलें रख दीं। श्रमिकों की मदद के लिए सरकारें आगे बढ़ीं तो सरकारों की मदद के लिए न जाने कितने ही समाजसेवी, स्वयंसेवी बढ़ आए। सिखों ने, जैनों ने, हिंदुओं ने, मुसलमानों ने…जिससे जो बन पड़ा किया। सरकारें कोरोना से लड़ सकें, इसके लिए दिल खोलकर दान किया। डॉक्टरों, नर्सों, पुलिसकर्मियों, सफाईकर्मियों से लेकर तमाम प्रशासनिक अधिकारियों और कर्मचारियों ने इस संकट में जो कुछ किया, उसके पीछे शासकीय दायित्व के निर्वहन के अलावा मानवीय दायित्व के निर्वहन का भी जज्बा नजर आया। कुल मिलाकर कोरोना के खिलाफ हमने एक संगठित प्रतिरोध को उभरकर सामने आते देखा।
कोरोना-वायरस का प्रतिरोधी टीका आज नहीं तो कल तैयार हो ही जाएगा। दवाइयां आज नहीं तो कल तैयार हो ही जाएंगी। इस समय खुश होने की बात यह है कि कोरोना वायरस के सामाजिक दुष्परिणामों का प्रतिरोध आकार ले रहा है।बंद दरवाजों को खोलकर हमें इसी प्रतिरोध के साथ आगे बढ़ना है।
लेखक: आईएएस अफसर है

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