Chhattisgarh

रायपुर में 5 दिन में गईं कोरोना से 91 जानें

इनमें से आधे अस्पताल में एक दिन भी जिंदा नहीं रह पाए
रायपुर। कोरोना से राजधानीं में सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं। इनमें से ज्यादातर रायपुर के हैं और ऐसे लोगों की संख्या भी काफी है, जो बाहर से इलाज के लिए यहां आए और बचाए नहीं जा सके। राजधानी में पिछले 5 दिनों में 91 लोगों की जान कोरोना से गई है। खतरनाक बात ये है कि इनमें 48 ने अस्पताल में भर्ती होने के 12 से 24 घंटे के बीच दम तोड़ा, यानी 53 फीसदी लोग अस्पताल में 24 घंटे भी जीवित नहीं रह पाए। इनमें दो ऐसे भी थे, जो अस्पताल लाए जाने के बाद मृत घोषित कर दिए गए। विशेषज्ञों की मानें तो जांच व इलाज में देरी की वजह से ऐसा हो रहा है। सर्दी-खांसी, बुखार व सांस में तकलीफ होने पर तत्काल कोरोना जांच होनी चाहिए, लेकिन कई लोग एक-एक हफ्ते तक सामान्य दवाइयों से ठीक होने की कोशिश कर रहे हैं। इनमें से जिनकी हालत गंभीर होने लगती है, उनका अस्पताल पहुंचने के बाद भी बचना मुश्किल हो रहा है। दैनिक भास्कर ने लगातार हो रही मौत की पड़ताल की तो पता चला कि 5 दिनों में जितनी भी मौतें उनमें 34 को तो कोई गंभीर बीमारी भी नहीं थी अर्थात इनकी जान केवल कोरोना संक्रमण से हुई है। यानी इन्हें कोई दूसरी बीमारी और नहीं थी। बाकी लोग डायबिटीज, हाइपरटेंशन, किडनी, लिवर व कैंसर की बीमारी से जूझ रहे थे। डाक्टरों के मुताबिक ज्यादातर लोग यही सोचने लगे हैं कि कोरोना से उन्हीं की जान जा रही है, जिन्हें दूसरी बीमारियां भी हैं। लेकिन अब ऐसा नहीं है। प्रदेश में अब तक 585 में 205 से ज्यादा लोगों को सिर्फ कोरोना संक्रमण हुआ, दूसरी बीमारी नहीं थी, फिर भी उन्हें बचाया नहीं जा सका है। 14 सितंबर को संतोषी नगर के 43 वर्षीय व्यक्ति को मृत अवस्था में लाया गया। खमतराई की 70 वर्षीय महिला, डीडीनगर के 65 साल व दुर्ग के 44 वर्षीय पुरुष की मौत अस्पताल पहुंचने के कुछ घंटे बाद ही हो गई। इन लोगों को सांस लेने में तकलीफ व बुखार था। सीनियर गैस्ट्रो सर्जन डॉ. देवेंद्र नायक व सीनियर फिजिशियन डॉ. योगेंद्र मल्होत्रा के अनुसार मरीज जब अस्पताल पहुंचते हैं तो सांस लेने में काफी तकलीफ होती है। ऑक्सीजन की जरूरत होती है लेकिन उनकी स्थिति इतनी गंभीर होती है कि वेंटिलेटर पर ले जाना पड़ता है। काफी प्रयासों के बाद भी उनकी जान चली जाती है।
सात दिन सबसे महत्वपूर्ण
डाक्टरों के मुताबिक कोरोना के मरीजों के लिए 7 दिन काफी महत्वपूर्ण हैं। जब कोई व्यक्ति संक्रमित होता है, तो पहले दिन कोई लक्षण नहीं दिखता। तीसरे दिन गले में खराश और हल्की खांसी का इरिटेशन शुरू होता है। पांचवें खांसी और बुखार हो सकता है, इसके तुरंत बाद सांस में तकलीफ शुरू हो जाती है। सातवें दिन वेंटिलेटर की जरूरत अा जाती है। जिन्हें पहले से गंभीर बीमारी हो, उनके लिए रिस्क और बढ़ जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि जितनी मौतें हुई हैं, ऐसे लोगों की जांच और इलाज में कहीं न कहीं देरी हुई है।

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